अगर कोई बना दे आपका Deepfake वीडियो, तो ऐसे मिलेगी कानूनी मदद
अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का डीपफेक (Deepfake) वीडियो वायरल हुआ तो हर कोई हैरान था. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे अपने डीप फेक विडियो पर फिल्म एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना ने कहा कि तकनीक का जिस तरह से गलत इस्तेमाल हो रहा है, ये बहुत खतरनाक और डराने वाला है। इस मुद्दे पर रश्मिका को न सिर्फ कई सिलेब्रिटीज, बल्कि आम लोगों का साथ भी मिल रहा है। तो क्या है ये डीप फेक? इसके दुरुपयोग को कैसे रोका जा सकता है?
क्या है Deepfake टेक्नोलॉजी?
Deepfake शब्द Deep learning और Fake से मिलकर बना है. ये एक फेक टेक्नोलॉजी है, जिसकी मदद से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी सेलिब्रिटी वीडियो के फेस के साथ फेस स्वैप कर दिया जाता है. ये दिखने में हूबहू असली फोटो और वीडियो की तरह नजर आता है. ये टेक्नोलॉजी Generative Adversarial Networks (GANs) का यूज करती है, जिससे फेक वीडियो और इमेज बनाए जाते हैं.
एग्जांपल- अगर आप किसी की फोटो में किसी और का चेहरा लगाना चाहते हैं तो आप Deepfake टेक्नोलॉजी की मदद से लगा सकते हैं. ये संभव है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से है. AI से बनी फेक वीडियो को पहचान पाना लोगों के लिए काफी मुश्किल हो रहा है, जिसकी वजह से वो आसानी से किसी ट्रैप में फंस जाते हैं.
कैसे करें Deepfake की पहचान?
कई बार ऐसा होता है किसी की भी फेक वीडियो या फोटो बना दी जाती है, लेकिन उसकी पहचान कर पाना मुश्किल होता है. अगर आप भी इसका शिकार हुए हैं, या डर है आपको तो कुछ बातों का ख्याल रखें.
- ऐसी वीडियो में हाथ-पैर कि मूवमेंट पर रखें नजर
- कुछ प्लेटफॉर्म AI जनरेटेड कंटेंट के लिए वॉटरमार्क या अस्वीकरण का करते हैं इस्तेमाल
- ऐसे मार्क या डिसक्लेमर को ध्यान से करें चेक
गोपनीयता कानून (Privacy Laws)
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और इसके नियम किसी व्यक्ति की गोपनीयता के लिए कुछ सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिसमें डेटा गोपनीयता का अधिकार भी शामिल है. यदि कोई डीपफेक वीडियो किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी समानता का उपयोग करके उसकी गोपनीयता का उल्लंघन करता है, तो पीड़ित संभावित रूप से इस कानून के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है.
मानहानि (Defamation)
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 में मानहानि के प्रावधान शामिल हैं. यदि गलत जानकारी फैलाकर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से कोई डीपफेक वीडियो बनाया गया है, तो प्रभावित व्यक्ति निर्माता के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है.
साइबर अपराध (Cybercrime)
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और इसके संबद्ध नियमों में अनधिकृत पहुंच, डेटा चोरी और साइबरबुलिंग सहित साइबर अपराधों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है. ऐसे मामलों में जहां हैकिंग या डेटा चोरी जैसे अवैध तरीकों से डीपफेक वीडियो तैयार किए जाते हैं, पीड़ितों को इस कानून के तहत सहारा मिलता है. वे शिकायत दर्ज कर सकते हैं, क्योंकि इन कार्यों में अक्सर कंप्यूटर संसाधनों तक अनधिकृत पहुंच शामिल होती है और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा का उल्लंघन हो सकता है. अधिनियम ऐसे अपराधों को संबोधित करने और साइबर अपराधों से जुड़े डीपफेक वीडियो के निर्माण और प्रसार से प्रभावित लोगों के निवारण के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है.
कॉपीराइट उल्लंघन (Copyright Infringement)
जब किसी डीपफेक वीडियो में निर्माता की सहमति के बिना कॉपीराइट सामग्री शामिल होती है, तो कॉपीराइट अधिनियम, 1957 लागू होता है. कॉपीराइट धारकों के पास ऐसे उल्लंघनों के खिलाफ कार्रवाई करने का कानूनी अधिकार है. यह कानून मूल कार्य की सुरक्षा करता है और डीपफेक सामग्री में इसके अनधिकृत उपयोग पर रोक लगाता है. कॉपीराइट उल्लंघन कानून कॉपीराइट मालिकों को उनकी रचनात्मक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का सम्मान किया जाता है, और डीपफेक वीडियो के क्षेत्र में उनके काम के अनधिकृत और गैरकानूनी उपयोग को रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई की जाती है.
उपभोक्ता संरक्षण कानून (Consumer Protection Laws)
यदि डीपफेक वीडियो का निर्माण या वितरण उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाने वाले धोखाधड़ी वाले उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो प्रभावित व्यक्ति उपभोक्ता संरक्षण कानूनों, जैसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत राहत मांग सकते हैं. इस कानून का उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों और हितों की रक्षा करना है और हो सकता है, इसका इस्तेमाल धोखाधड़ी या गलत बयानी के मामलों में किया जाता है.