
नई दिल्ली: 1931 के बाद पहली बार, भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से 2025 की जनगणना में जाति आधारित आंकड़े (Caste Census) इकट्ठा करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स में लिया गया और इसकी पुष्टि सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की।
यह फैसला भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ढांचे को समझने और सुधारने की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जा रहा है।
क्या है इस फैसले का महत्व?
- 1931 के बाद पहली बार, पूरे देश में सभी जातियों की गिनती की जाएगी।
- अब तक केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का डेटा आधिकारिक तौर पर जुटाया जाता था।
- इससे सामाजिक योजनाओं, आरक्षण नीति, और संसाधनों के वितरण में सटीकता आएगी।
जनगणना कब होगी?
- मूलतः यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते टाल दी गई।
- अब इसे 2025 की शुरुआत से शुरू किया जाएगा, और डेटा 2026 तक सार्वजनिक किया जा सकता है।
जातिगत जनगणना क्यों जरूरी है?
नीति निर्माण के लिए सटीक डेटा
जातियों की संख्या और सामाजिक स्थिति के आधार पर शिक्षा, नौकरियों और सामाजिक कल्याण की योजनाएं बेहतर बनाई जा सकती हैं।
समान प्रतिनिधित्व
जातिगत आंकड़ों के अभाव में कई समुदाय सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। यह कदम उन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा।
राजनीतिक पारदर्शिता
जाति पर आधारित राजनीति में अक्सर अनाधिकारिक और अनुमानित आंकड़ों का इस्तेमाल होता है। यह जनगणना उस असमानता को दूर कर सकती है।
राजनीतिक संदर्भ और विवाद
- बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों में विपक्षी दलों ने पहले ही अपनी जाति जनगणनाएं करवाई थीं, जिससे इस मुद्दे पर चर्चा तेज़ हो गई थी।
- केंद्र सरकार के इस कदम को जातिगत आंकड़ों की विश्वसनीयता को एकरूप करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
- हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस डेटा का दुरुपयोग या राजनीतिकरण भी एक बड़ा खतरा हो सकता है।
जनगणना में क्या-क्या पूछा जाएगा?
- व्यक्ति की जाति (अन्य पिछड़ा वर्ग, सामान्य, अनुसूचित जाति, आदि)
- सामाजिक स्थिति
- शिक्षा स्तर
- आय स्तर (संभावित)
- क्षेत्रीय और भाषाई पहचान
चुनौतियां और चिंताएं
- गोपनीयता की रक्षा एक बड़ी चुनौती होगी।
- डेटा हैंडलिंग और प्रोसेसिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी।
- समाज में जातिगत ध्रुवीकरण न बढ़े, इसके लिए प्रचार और प्रशिक्षण जरूरी है।
निष्कर्ष: एक बदलावकारी कदम, पर संतुलन जरूरी
93 वर्षों बाद भारत में जाति आधारित जनगणना को कानूनी और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलना एक ऐतिहासिक और नीतिगत सफलता है। यह निर्णय भारत की सामाजिक न्याय व्यवस्था को और मजबूत कर सकता है, बशर्ते इसे निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए।